इस कारखाना मैं बिजी यारों का सावधिक पुनर्कल्पन 1984 में प्रारंभ कर दिया गया था। रेल विकास यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव यूनीगेज पॉलिसी का लागू होना था जिसके तहत मीटर गेज तथा नैरो गेज की लाइनों का आमान परिवर्तन बड़ी लाइन में पैमाने पर शुरू हुआ। बदले हुए परिवेश तथा आवश्यकता को देखते हुए गोरखपुर यांत्रिक कारखाना में मीटर गेज वैगन का सावधिक पुनर्कल्पन फरवरी, 1984 मैं बंद कर दिया तथा ब्रांड के यानो का सावधिक पुनर्कल्पन का कार्य प्रारंभ किया गया। भारतीय रेलों के विकास का एक महत्वपूर्ण पड़ाव ट्रेक्शन पॉलिसी में परिवर्तन था, जिसके फलस्वरूप स्टीम इंजन की जगह डीजल/ इलेक्ट्रिक इंजन प्रयोग में आए। यांत्रिक कारखाना में इसी के साथ स्टीम लोगों का सर्वाधिक पुनर्कल्पन 1994 में बंद कर दिया गया।
20वीं सदी के दौरान कारखाने ने अपनी विकास यात्रा में अनेक महत्वपूर्ण मंजिलो को सफलता पूर्वक पार किया और इस दौरान अपने उत्पादों को लगातार समयानुकुल परिवर्तित कर परिचालन को महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया। 20वी शताब्दी के अंत तक कारखाने को 21वी शताब्दी की आवश्यकताओं के अनुरूप डालने के लिए बड़े पैमाने पर परिवर्तनों की आवश्यकता प्रतीत होने लगी थी। अतीत के 97 वर्ष गौरवपूर्ण स्वर्णिम इतिहास की पृष्ठभूमि के साथ जाकर खाना 21वीं शताब्दी में एक महत्वपूर्ण खोज रिपेयर शॉप के रूप में नया इतिहास लिखने को तैयार था।
कारखाने के भविष्य को ध्यान में रखते हुए 1998- 99 मैं लगभग 20 करोड़ का वर्कशॉप प्रोग्राम , कारखाना के विस्तार हेतु रेलवे बोर्ड भेजा गया। इसके तहत कारखाने की सर्वाधिक पुनर्कल्पन की छमता 75 को प्रतिमा से 125 कोच प्रतिमा तक बढ़ाये जाने हेतु प्रस्ताव भेजा गया। रेलवे बोर्ड ने इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकृत प्रदान कर दी। धीरे-धीरे इस योजना के अंतर्गत स्वीकृत धनराशि से नए निर्माण कार्य हुए। इसी क्रम में वर्ष 2001 में मीटर गेज यहां का सर्वाधिक पुनर्कल्पन जनवरी में बंद किया गया और इसके साथ यात्रिक कारखाना गोरखपुर बड़ी लाइन या नो के सर्वाधिक पुनर्कल्पन का कार खाना बन गया।
पूर्वोत्तर रेलवे के भविष्य की आवश्यकताओं को देखते हुए कर खाने को अभी भी कई मंजिल तय करना शेष था। 21वीं शताब्दी, यात्रिक कारखाना के लिए एक और स्वर्णिम अवसर लेकर आई। वर्ष 2001 2002 में रेलवे बोर्ड से 20 करोड़ की लागत से एक और नए निवेश की स्वीकृति प्राप्त हुई इस निवेश के तहत कारखाने की सवाधिक पुनर्कल्पन की क्षमता 125 से बढ़ाकर 175 कुछ किया गया। इन दोनों निवेशो के पूर्ण होने पर यात्रिक कारखाना गोरखपुर, भारतीय रेल में पांचवें स्थान से बढ़कर चौथे स्थान पर आ गया है। यह घर की बात है कि 1970 में गोरखपुर कारखाने को सबसे पहले नेशनल सेफ्टी (एक्सीडेंट फ्री) अवार्ड मिला। उसके बाद वर्ष 1973 1977 तथा 1979 में बीयर अवार्ड उदयपुर कारखाने को मिला जो कारखाना कर्मचारियों की कार्यकुशलता और सजगता का प्रतीक है।
वर्ष 2003 में यात्रिक कारखाना गोरखपुर ने अपना शताब्दी वर्ष पूर्ण किया। वर्तमान में यह कारखाना लगातार अपनी क्षमताओं में वृद्धि करता हुआ नई नई मशीनों और संयंत्रों के प्रयोग द्वारा उत्कृष्ट कार्य करता हुआ नई ऊंचाइयों की ओर कदम बढ़ा रहा है। वर्तमान में रेलवे बोर्ड के दिशा-निर्देशों के अनुरूप यात्रिक कारखाना गोरखपुर 174 कोच प्रतिमाह का सवाधिक पुनर्कल्पन का कार्य कर रहा। स्किन साथ ही 132 कोच प्रतिमाह के लिए बॉबी का आई ओ एच कर रहा है।
यह कारखाना लगातार यात्रियों की संरक्षा, सुरक्षा एवं सुविधाओं के प्रति सजग रहा है। जिसके लिए अनेक परिवर्तन तथा आधुनिकीकरण किया जाते रहे हैं। यह कारखाना पूर्वोत्तर रेलवे एवं अन्य निकटतम मंडलों के लिए डीजल लोको चक्के, कैरेज चक्के, डिस्ट्रीब्यूशन वाल्व, शॉक एब्जॉर्बर , अवयव, बायो टॉयलेट आदि के मरम्मत का कार्य भी कर रहा है।
अपने स्थापना के 112 वर्ष बाद भी पूर्वोत्तर की आवश्यकताओं के अनुरूप यात्रिक कारखाना गोरखपुर के भविष्य की योजनाओं फिर भी अपना ध्यान केंद्रित रखा है और अब यह कारखाना एल एच बी कोच के सवाधिक पुनर्कल्पन के लिए भी तैयार है।
History
बाबा गोरखनाथ की पवित्र तपोभूमि पर पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्यालय में स्तिथ यांत्रिक कारखाना , पूर्वोत्तर रेलवे के सञ्चालन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह कारखाना कुल 29.8 हेक्टेयर भूमि में फैला हुआ है इसमें से 12.6 हेक्टेयर छेत्रफल में विभिन्न शॉप तथा कार्यालय स्तिथ है। इस कारखाने की औपचारिक स्थापना वर्ष 1903 में हुई थी।
यह कारखाना इससे पहले सोनपुर में था जहा प्रति वर्ष बाढ़ से कई महीने तक कारखाने का काम बंद हो जाया करता था। इस कारण 1898 में एक सर्वे टीम सोनपुर से पैदल , नाव तथा घोड़ो आदि की मदद से 7-8 दिन में गोरखपुर पहुंची। उस सर्वे टीम को यदुनंदन मिस्त्री व् रघुनन्दन मिस्त्री नाम के दो ठेकेदार उचित स्थान की खोज करते हुए गोरखपुर लेकर आये थे। यह दोनों लोग सोनपुर कारखाने में बतौर ठेकेदार काम करते थे। वर्ष 1898 के सर्वे के बाद सोनपुर से कारखाने को गोरखपुर स्थानांतरित करने का कार्य प्रारभ्म हुआ , जो लगभग 5 वर्षो के उपरांत वर्ष 1903 में पूरा हुआ।
20 वी सदी के प्रारभ्म में भारत में राजनैतिक , सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में क्रन्तिकारी परिवर्तन हुए। उत्तर भारत विशेषकर बंगाल , बिहार और उत्तर प्रदेश इस परिवर्तन के केंद्र बिंदु थे। इसी समय आसाम -दिल्ली रूट पर स्तिथ गोरखपुर , यातायात के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में पहचान बना रहा था। गोरखपुर में लोको और कैरेज के पुनर्कल्पन की आवश्यक्ता को पहचानते हुए तत्कालीन रेलवे प्रशासन ने यहाँ एक वर्कशॉप की स्थापना करने का निश्चय किया , जिसके फलस्वरूप सन 1903 में गोरखपुर का वर्तमान कारखाना स्थापित हुआ जिसे बंगाल एवं असम नार्थ वेस्ट रेलवे लोकोमोटिव एवं कैरेज कारखाना का नाम दिया गया तथा इसके सर्वोच्च अधिकारी के रूप में श्री ऐ इ रॉयल्स सुपरिटेंडेंट के पद पर स्थापित हुए।
The System
The North Eastern Railway system passes through the states of Uttar Pradesh, Bihar and Uttarakhand and runs from West to East. Most of the system is situated north of river Ganga and traverses through basin of river Ganga and touches Nepal border at number of places such as Nepalganj Road, Barhni, Nautanwa. A number of rivers originating in Nepal such as Sharda, Ghaghra, Rapti, Gandak and its various tributaries pass through areas served by this Railway.
Major rivers like Ganga, Gomti, Saryu, etc. cut across the railway system at a number of places. As these rivers are prone to flash floods, many sections of the N.E Railway are vulnerable and are prone to breaches in the rainy season. This Railway is famous for the bridges across the various rivers, each of which is an Engineering masterpiece.
Arvind Kumar Pandey(PCME)
27.11.18 से प्रधान मुख्य यांत्रिक इंजीनियर के पद पर के पद पर कार्यरत हैं।
Yogesh Mohan (CWM)
20.07.2021 से मुख्य कारखाना प्रबंधक के पद पर के पद पर कार्यरत हैं।
Workshop Officers
Designation | Name |
Dy.CME/Works | Dilip Kumar Pandey |
Dy.CME/Repair | Anubhav Pathak |
Dy.CEE | M.K Singh |
A.K.Singh | WM/Plant |
Sr.AFA | Sanjay Mishra |
AWM-I | Anuj Kumar Mishra |
DEN | A.K Pandey |
AEE-II | V.K Srivastava |
ACMT | S.N Thakur |
AWM-II | Harishankar Kumar |
PWTC | Sanjay Kumar |
AFA | R.C Prasad |
WPO | Gopal Prasad Gupta |
APO | Anand Kumar |
AEE-I | U.C Mishra |
CMT | B.L Jatav |
Team of Engineers
Mechanical Shop :
Designation | Name |
SSE/Fur-I | Naseem Ahmad |
SSE/Fur-I | V. K. Singh |
SSE/Fur-I/Store | S. K. Srivastava |
SSE/Fur-II | Sudhakar Singh |
SSE/Shell | R. P. Singh |
SSE/Shell | Rajendra Tiwari |
SSE/Machine Shop | Arun Tripathi |
SSE/Mill Weight | Sanjay Srivastava |
SSE/Bogie | P.K Agrahari |
SSE/Wheel | Farhat Mahmood |
SSE/Lifting | O. P. Ram |
SSE/Bio-Tank | Shuk Mehboob Alam |
SSE/Computer | Arvind Kumar |
SSE/RSP | Vinay Kumar |
SSE/Secdul | S. K. Mishra |
SSE/ Inspection | S.D Yadav |
SSE/Tender | Rinkesh Gupta |
SSE/T.L. | R. K. Tiwari |
SSE/C.W. | Mubaraq Ali |
Electrical Shop :
Designation | Name |
SSE/T.L. | R. K. Tiwari |
SSE/C.W. | Mubaraq Ali |